
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले में सूरत शहर के वराछा इलाके के निवासी शैलेश कालठिया की आतंकियों ने बेरहमी से हत्या कर दी। इस हमले में जान बचाने में सफल रहे उनके बेटे नक्ष कालठिया और पत्नी शीतल कालठिया ने घटना की पूरी कहानी मीडिया को बताते हुए देश का दिल दहला दिया।
बेटे नक्ष कालठिया की आंखों देखी:
“हम पहलगाम के ‘मिनी स्विट्ज़रलैंड’ पॉइंट (बैसारन घास का मैदान) पर थे। अचानक गोलियों की आवाज़ आई… हमें समझ आ गया कि आतंकवादी इलाके में घुस आए हैं, तो हम छिपने की कोशिश करने लगे। लेकिन वे हमें खोजते हुए हमारे पास आ गए। हमने दो आतंकवादियों को देखा। मैंने सुना कि उनमें से एक ने सभी पुरुषों को हिंदू और मुस्लिम में बांटने का आदेश दिया, और फिर सभी हिंदू पुरुषों को गोली मार दी गई। उन्होंने सभी से तीन बार ‘कलमा’ पढ़ने को कहा… जो लोग नहीं पढ़ सके, उन्हें गोली मार दी गई। जब आतंकवादी वहां से चले गए, तब स्थानीय लोग आए और उन्होंने कहा कि जो भी जिंदा हैं, वे तुरंत नीचे चले जाएं। सेना करीब एक घंटे बाद वहां पहुंची, जब हम नीचे उतर चुके थे। आतंकवादी मेरे पापा को कुछ बोलने तक नहीं दे रहे थे… उन्होंने मेरी मम्मी से कुछ नहीं कहा। एक आतंकी गोरा था, उसकी दाढ़ी थी और उसके सिर पर कैमरा बंधा हुआ था। उन्होंने औरतों और बच्चों को नुकसान नहीं पहुंचाया।”
पत्नी शीतल कालठिया का बयान:
“जैसे ही गोलियों की आवाज़ आई, हम भागकर छिपने लगे, लेकिन चारों तरफ बाउंड्री थी, जिससे भागने की कोई जगह नहीं थी। अचानक एक आतंकी हमारे सामने आ गया… उसने कहा कि हिंदू एक तरफ और मुस्लिम दूसरी तरफ खड़े हो जाएं। वह हर किसी से ‘कलमा’ कहता और मुस्लिम जवाब में ‘मुसलमान’ कहते… फिर उसने हिंदू पुरुषों को अलग किया और उन्हें गोली मार दी। उसके पास एक लंबी बंदूक थी, जिसके ऊपर कैमरा लगा हुआ था। वह वहीं खड़ा होकर देखता रहा कि जिनको उसने मारा है वे मरें… उसने हमारे सामने 6-7 लोगों को बहुत पास से गोली मारी, जिससे वे 2-3 मिनट में ही मर गए। मेरे पति का सिर मेरी गोद में था और मैं कुछ नहीं कर सकी। मुझे इस बात पर हैरानी है कि इतने सारे पर्यटकों के होने के बावजूद वहां कोई सेना या पुलिसकर्मी मौजूद नहीं था।”
यह घटना ना केवल आतंकवाद की नृशंसता को उजागर करती है, बल्कि पर्यटक स्थलों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल भी खड़े करती है।