
पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा कल से, सुरक्षा के लिए 10,000 से अधिक पुलिसकर्मी तैनात; 30 लाख से अधिक श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद
भगवान जगन्नाथ की वार्षिक रथ यात्रा (कार उत्सव) शुक्रवार, 27 जून से ओडिशा के पुरी में भव्य रूप से आरंभ होने जा रही है। इस आयोजन के लिए सुरक्षा और ट्रैफिक प्रबंधन को ध्यान में रखते हुए 10,000 से अधिक पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है। इस वर्ष 30 लाख से अधिक भारतीय श्रद्धालु और हजारों विदेशी पर्यटक पुरी पहुंचने की उम्मीद है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ अपने भाई भगवान बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा के साथ हर वर्ष नौ दिवसीय यात्रा पर निकलते हैं। इस दौरान तीनों देवता रथों पर सवार होकर पुरी के 12वीं सदी के जगन्नाथ मंदिर से निकलकर गुंडिचा मंदिर (जो उनकी मौसी का घर माना जाता है) तक की यात्रा करते हैं। इस वर्ष बहुदा यात्रा यानी वापसी यात्रा 5 जुलाई को होगी।
रथ यात्रा हर वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है। इस दिन तीन विशाल और सजी-धजी रथों में देवताओं को पहंडी विधि के अंतर्गत मंदिर से बाहर लाया जाता है और करीब 3 किलोमीटर लंबी यात्रा के बाद गुंडिचा मंदिर में स्थापित किया जाता है।
देवी अर्धासिनी (मौसीमा) को भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन की मौसी माना जाता है, और यह यात्रा उन्हीं के मंदिर तक होती है।
पुरी नगरी हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान रखती है, क्योंकि इसे चार धाम में से एक माना जाता है। मान्यता है कि रथ यात्रा के दौरान भगवान स्वयं अपने गर्भगृह से बाहर आकर अपने भक्तों से मिलने आते हैं।
धार्मिक ग्रंथ बामदेव संहिता के अनुसार, जो भी श्रद्धालु एक सप्ताह तक गुंडिचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन को सिंहासन पर दर्शन करता है, उसे और उसके पूर्वजों को बैठकुंठ (वैष्णवों का स्वर्ग) में स्थान प्राप्त होता है।
चूंकि गैर-हिंदुओं को जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं होती, ऐसे में यह रथ यात्रा विदेशी श्रद्धालुओं को भगवान के दर्शन का अनूठा अवसर प्रदान करती है।
यह महोत्सव न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत और एकता का भी प्रतीक है।