पद्मश्री सालुमरादा थिम्मक्का का 114 वर्ष की उम्र में निधन—प्रकृति की सच्ची संरक्षिका ने कहा दुनिया को अलविदा

पर्यावरण संरक्षण की प्रतीक और पद्मश्री सम्मानित सालुमरादा थिम्मक्का का शुक्रवार देर रात निधन हो गया। 114 वर्ष की उम्र में उन्होंने बेंगलुरु के एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। परिवार के मुताबिक, वह पिछले कुछ समय से अस्वस्थ थीं और उपचार चल रहा था।
1911 में कर्नाटक के एक साधारण परिवार में जन्मी थिम्मक्का ने बिना औपचारिक शिक्षा के भी पर्यावरण संरक्षण की ऐसी मिसाल कायम की, जिसे दुनिया सलाम करती है। उन्होंने रामनगर जिले के हुलिकाल और कुडुर के बीच करीब 4.5 किमी सड़क किनारे 385 बरगद के पेड़ों को रोपकर और पालन-पोषण कर इतिहास रच दिया।
बच्चे न होने के दुख को उन्होंने प्रकृति से रिश्ता बनाते हुए पेड़ों की परवरिश में बदल दिया। लोगों ने उन्हें प्यार से “सालुमरादा” यानी “पेड़ों की कतार” कहा।
अपने जीवनकाल में उन्हें पद्मश्री (2019), इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार (1997), नेशनल सिटिजन अवॉर्ड (1995) और हम्पी यूनिवर्सिटी का नडोजा अवॉर्ड (2010) सहित कई सम्मान मिले।
उनके निधन पर राजनीतिक नेताओं, पर्यावरणविदों और देशभर के लोगों ने गहरी शोक संवेदना व्यक्त की है।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा— “वृक्षमाते थिम्मक्का ने हजारों पेड़ लगाकर और उन्हें बच्चों की तरह संभालकर अपना जीवन पर्यावरण के नाम किया। उनका जाना एक अपूरणीय क्षति है।”
विपक्ष के नेता आर. अशोक ने लिखा— “थिम्मक्का जी के पेड़ मेरे बच्चे हैं’ जैसे विचारों ने उन्हें पर्यावरण सेवा का प्रतीक बनाया। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।”
थिम्मक्का का निधन सिर्फ एक महान पर्यावरण प्रेमी की विदाई नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए क्षति है जो प्रकृति को अपना परिवार मानता है। उनकी हरियाली की विरासत आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरित करती रहेगी।



