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पुतिन खोलेगे भारत के लिए आर्कटिक का रास्ता, चीन पर लगाम की तैयारी — क्यों है बर्फीला मार्ग अहम?

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वैश्विक भू-राजनीति में नया मोड़: रूस और भारत की सदियों पुरानी दोस्ती आर्कटिक में नए आयाम छूने वाली है। दिसंबर में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की प्रस्तावित भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच आर्कटिक क्षेत्र में ऐतिहासिक समझौते की रूपरेखा बन सकती है। यह समझौता नॉर्दर्न सी रूट (NSR) और संसाधन विकास पर केंद्रित होगा, जिससे भारत को आर्कटिक काउंसिल में रणनीतिक भूमिका मिल सकती है।

NSR, जो पारंपरिक समुद्री मार्गों से 40% छोटा है, यूरोप और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के बीच तेज़ और किफायती कार्गो परिवहन की संभावना खोलता है। जुलाई 2024 में प्रधानमंत्री मोदी की मॉस्को यात्रा में भारत और रूस ने आर्कटिक शिपिंग में सहयोग के लिए संयुक्त कार्य समूह बनाने पर सहमति दी थी। इस समूह ने भारतीय नाविकों के ध्रुवीय प्रशिक्षण और NSR पर कार्गो शिपिंग सहयोग जैसे प्रस्ताव तैयार किए हैं।

रूस का लक्ष्य भारत को आर्कटिक काउंसिल में अधिक प्रभावशाली भूमिका देना है, ताकि चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित किया जा सके। आर्कटिक की संपदा — तेल, गैस और दुर्लभ खनिज — इसे रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण बनाती है। साथ ही, रूस चाहता है कि NSR को भारत के चाबहार बंदरगाह से जोड़ा जाए, जिसे भारत अगले दस वर्षों तक संचालित करेगा।

पुतिन का भारत दौरा इस द्विपक्षीय साझेदारी में एक नया अध्याय खोल सकता है — एक ऐसा कदम जो दोनों देशों के आर्थिक और सामरिक हितों को मजबूत करेगा और आर्कटिक को वैश्विक व्यापार का नया गेटवे बना सकता है।

 

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