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हिमालय में भारतीय सेना–वायुसेना का बहुआयामी युद्धाभ्यास, आधुनिक हथियारों संग संयुक्त शक्ति का प्रदर्शन

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अरुणाचल प्रदेश की ऊँचाई पर बसे दुर्गम हिमालयी इलाकों में भारतीय सेना की ईस्टर्न कमान और वायुसेना द्वारा एक संयुक्त बहुआयामी सैन्य अभ्यास जारी है। 10 नवंबर से शुरू हुआ यह अभ्यास 15 नवंबर तक चलेगा और इसका उद्देश्य वास्तविक युद्ध जैसी परिस्थितियों में तीनों सेनाओं के बीच तालमेल, त्वरित प्रतिक्रिया क्षमता और तकनीकी बढ़त का मूल्यांकन करना है।

अभ्यास की शुरुआत उन्नत निगरानी प्रणालियों—हेlicopters, UAVs, स्पेस-बेस्ड सेंसर और स्पेशल फोर्सेज—की तैनाती से हुई, जिनकी मदद से कठिन इलाके में तुरंत डोमेन अवेयरनेस स्थापित की गई और काल्पनिक लक्ष्यों को चिन्हित किया गया।

रक्षा जनसंपर्क अधिकारी के अनुसार, निशानों के पहचान होते ही उन्हें लंबी दूरी के रॉकेट सिस्टम, मीडियम आर्टिलरी, सशस्त्र हेलीकॉप्टर, स्वॉर्म ड्रोन, लोटरिंग म्यूनिशन और कामिकाज़े ड्रोन के सटीक संयुक्त प्रहार से नष्ट किया जा रहा है। यह पूरा अभ्यास इलेक्ट्रॉनिक युद्ध (EW) की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में किया जा रहा है।

13 नवंबर को लेफ्टिनेंट जनरल अभिजीत एस पंधारकर, जीओसी 3 कॉर्प्स, ने अभ्यास की समीक्षा की और भाग लेने वाली सभी इकाइयों के तालमेल और तत्परता की सराहना की।
यह अभ्यास पिछले वर्ष हुए “पूर्वी प्रहार” और इस वर्ष मार्च में आयोजित “प्रचंड प्रहार” की अगली कड़ी है। नवीनतम अभ्यास का उद्देश्य तीनों सेनाओं की संयुक्त योजना, कमांड-एंड-कंट्रोल और निगरानी से लेकर फायरपावर तक सभी क्षमताओं का सत्यापन करना है।

सशस्त्र सेनाओं द्वारा हाल ही में 3 नवंबर से 7 नवंबर तक किया गया त्रि-सेवा अभ्यास “त्रिशूल” भी इसी श्रृंखला का हिस्सा था, जिसमें नौसेना के सतह और पनडुब्बी प्लेटफॉर्म, वायुसेना के 40 से अधिक विमान, और सेना के 30,000 से अधिक कर्मी और स्वदेशी हथियार शामिल रहे।

यह सभी अभ्यास इस बात को रेखांकित करते हैं कि भारत की सेनाएँ संयुक्त संचालन, आधुनिक तकनीक और सटीक प्रहार क्षमता के साथ किसी भी रणनीतिक खतरे का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।

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