अमित शाह बोले – ‘वंदे मातरम्’ भारत की आत्मा का स्वर, स्वतंत्रता से लेकर सांस्कृतिक एकता का प्रतीक

नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि भारत के इतिहास में ऐसे अनेक क्षण आए, जब गीतों और कलाओं ने जन-भावनाओं को स्वर देकर राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाई। चाहे छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना के युद्धगीत हों, आज़ादी के सेनानियों के क्रांतिकारी गान या आपातकाल के विरोध में गूंजे सामूहिक स्वर — इन सबने देश को एकजुट किया और स्वाभिमान की भावना को जीवित रखा।
इसी श्रंखला में भारत का राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ केवल एक गीत नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का शाश्वत प्रतीक है। अमित शाह ने कहा कि इस गीत की शुरुआत किसी युद्धभूमि से नहीं, बल्कि बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के शांत लेकिन दृढ़ संकल्प से हुई थी।
1875 में जगद्धात्री पूजा के दिन बंकिम बाबू ने वह शब्द लिखे, जो आगे चलकर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की सबसे सशक्त प्रेरणा बने।
‘वंदे मातरम्’ की पंक्तियाँ अथर्ववेद के उद्घोष — “माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः” — से प्रेरित हैं। यह गीत केवल प्रार्थना नहीं, बल्कि उस युग का आह्वान था जिसने सोई हुई राष्ट्रीय चेतना को जगाया।
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का प्रथम उद्घोष:
अमित शाह ने कहा कि बंकिमचंद्र का यह गीत भारत की भूमि को केवल एक भूभाग नहीं, बल्कि तीर्थ और त्याग की पवित्र भूमि के रूप में प्रस्तुत करता है। महर्षि अरविंद ने भी बंकिम बाबू को आधुनिक भारत का ऋषि कहा, जिन्होंने अपने शब्दों से राष्ट्र की आत्मा को पुनर्जीवित किया।
ऐतिहासिक प्रसंग:
1896 में रवींद्रनाथ टैगोर ने ‘वंदे मातरम्’ को संगीतबद्ध कर कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार गाया। इसके बाद यह गीत पूरे देश में स्वतंत्रता का प्रतीक बन गया।
बंगाल विभाजन (1905) के विरोध में जब अंग्रेज़ों ने इस गीत के सार्वजनिक पाठ पर प्रतिबंध लगाया, तब भी हजारों भारतीयों ने इसे गाते हुए लाठीचार्ज और अत्याचारों का सामना किया।
‘वंदे मातरम्’ का स्वर गदर पार्टी से लेकर आज़ाद हिंद फ़ौज तक गूंजता रहा। खुदीराम बोस, अशफ़ाक उल्ला ख़ाँ, चंद्रशेखर आज़ाद और तिरुपुर कुमारन जैसे वीरों के होंठों पर यही मंत्र था। महात्मा गांधी ने कहा था कि “वंदे मातरम् में सबसे सुस्त रक्त को भी जगाने की जादुई शक्ति है।”
वंदे मातरम् के 150 वर्ष:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 अक्टूबर के मन की बात कार्यक्रम में इस ऐतिहासिक गीत के 150 वर्ष पूरे होने पर इसकी गौरवशाली यात्रा को याद किया। इसके तहत भारत सरकार 7 नवंबर 2025 से एक वर्ष तक देशभर में विशेष कार्यक्रम आयोजित करेगी, ताकि युवा पीढ़ी इस गीत की भावना और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विचार से जुड़ सके।
अमित शाह ने कहा कि आज जब भारत ‘विकसित भारत 2047’ के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है, ‘वंदे मातरम्’ उसी अटूट आत्मविश्वास का प्रतीक है। यह गीत केवल अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि भविष्य के भारत का आह्वान है।
उन्होंने कहा — “राष्ट्र की आत्मा से जन्मे शब्द कभी समाप्त नहीं होते, वे पीढ़ियों तक गूंजते रहते हैं। वंदे मातरम् वह शाश्वत जयघोष है जो युगों-युगों तक भारत के हृदय में प्रतिध्वनित रहेगा।”



