अलीनगर में रचा इतिहास: लोकगायिका मैथिली ठाकुर बनीं बिहार की सबसे युवा विधायक, 12 प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ा

अलीनगर विधानसभा चुनाव वर्ष 2025 में सबसे ज़्यादा सुर्खियाँ किसी ने बटोरीं तो वह थीं 25 वर्षीय लोकगायिका से नेता बनीं मैथिली ठाकुर। पूरे चुनाव में उनकी चर्चा राजनीति से कम और उनकी मधुर वायुसी गायकी को लेकर अधिक होती रही। नामांकन वाले दिन से लेकर अमित शाह के साथ साझा किए गए मंच तक—भीड़ उनके भाषण से ज़्यादा उनकी सुरभरी आवाज़ पर ताली बजाती नज़र आई।
सबसे युवा विधायक बनीं मैथिली ठाकुर:
करीब एक दशक पहले जब बिहार की एक शर्मीली किशोरी ने अपनी मीठी आवाज़ से संगीत जगत में पहचान बनानी शुरू की थी, तब शायद किसी ने नहीं सोचा था कि वही लड़की एक दिन राजनीतिक मंच पर भी चमकेगी। लेकिन 2025 में इतिहास बना—मैथिली ठाकुर ने अलीनगर सीट पर राजद के वरिष्ठ नेता बिनोद मिश्रा को 11,730 वोटों से मात देकर जीत दर्ज की और बिहार विधानसभा की सबसे कम उम्र की निर्वाचित विधायक बन गईं।
अंतिम राउंड की गिनती में उन्हें कुल 84,915 वोट मिले, जबकि मिश्रा को 73,185 वोट प्राप्त हुए।
मैथिली ने अपने विजयी संबोधन में कहा,
“मैं अलीनगर में घर बनाना चाहती हूँ और इसे अपना स्थायी ठिकाना बनाऊँगी। मेरे ननिहाल की जड़ें यहीं हैं।”
मैथिली ठाकुर: संगीत से राजनीति की ओर सफर:
मैथिली ठाकुर का जन्म 25 जुलाई 2000 को मधुबनी के बेनीपट्टी में हुआ। उनके पिता रमेश ठाकुर संगीत शिक्षक हैं और माँ भारती ठाकुर गृहिणी। बचपन से ही संगीत के प्रति समर्पित मैथिली अपने भाइयों—ऋषभ और अयाची—के साथ प्रस्तुति देती रही हैं।
उन्होंने अपने करियर में लिटिल चैंप्स और राइजिंग स्टार जैसे टीवी शो में भाग लिया और सोशल मीडिया पर भी उनकी विशाल फैन फॉलोइंग है।
उन्हें 2021 में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार, लोकमत सुर ज्योत्सना अवॉर्ड, और 2024 में नेशनल क्रिएटर्स अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
अलीनगर से चुनाव लड़ने पर लगा ‘बाहरी’ का ठप्पा:
14 अक्टूबर को बीजेपी में शामिल होने के बाद मैथिली को विपक्ष ने “बाहरी” कहकर घेरने की कोशिश की। हालांकि वे स्थानीय मैथिली भाषा में दक्ष हैं और उनका पारिवारिक नाता मधुबनी से है, लेकिन परिवार कई वर्षों से दिल्ली में रह रहा था।
चुनाव घोषणा से एक दिन पहले भाजपा नेताओं के साथ उनकी तस्वीर वायरल हुई थी, जिसके बाद उनका टिकट लगभग तय माना जाने लगा।
बीजेपी ने लगाई पूरी ताकत:
अमित शाह से लेकर धर्मेंद्र प्रधान तक—केंद्रीय नेतृत्व ने अलीनगर में पूरी ताकत झोंक दी। स्थानीय कार्यकर्ता भी मानते थे कि मैथिली की “साफ-सुथरी छवि” और लोकप्रियता उनके पक्ष में बड़ा हथियार है।
प्रतिद्वंद्वी RJD नेता क्या कहते थे?
मुख्य मुकाबला ब्राह्मण समुदाय के दो उम्मीदवारों—मैथिली ठाकुर और बिनोद मिश्रा—के बीच था। मिश्रा मुस्लिम और यादव समुदायों के वोट बैंक पर भरोसा कर रहे थे।
उन्होंने दावा किया था कि अलीनगर की जनता “बाहरी” उम्मीदवारों को चुनने की गलती दोबारा नहीं दोहराएगी और मैथिली राजनीति में नई हैं।
लेकिन जनादेश ने दिखा दिया कि जनता ने बदलाव चुना।
निष्कर्ष:
संगीत की दुनिया से निकलकर राजनीति के मैदान में उतरी मैथिली ठाकुर ने अलीनगर की जनता का दिल जीत लिया। उनकी जीत न सिर्फ उम्र के लिहाज से रिकॉर्ड है, बल्कि इस बात का प्रमाण भी कि लोकप्रियता और साफ छवि युवा नेताओं के लिए बड़ी ताकत बन सकती है।



