
अखिलेश यादव के ‘केदारनाथ जैसे मंदिर’ पर पुजारियों का फूटा गुस्सा: “धार्मिक भावना का उल्लंघन”
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के गृह क्षेत्र सैफई (इटावा) में बन रहे ‘केदरेश्वर महादेव धाम’ मंदिर को लेकर बड़ा धार्मिक और राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। प्रमुख संत संगठनों और पुजारी महासंघों ने मंदिर निर्माण पर आपत्ति जताई है। उनका आरोप है कि यह मंदिर उत्तराखंड स्थित पवित्र केदारनाथ धाम की एक ‘प्रतीकात्मक प्रतिकृति’ है, जो भारत के प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में एक के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक स्वरूप का अपमान है।
“केवल शिव मंदिर नहीं, आस्था का केन्द्र है केदारनाथ”
चारधाम तीर्थ पुरोहित महापंचायत, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद और अन्य धार्मिक संगठनों ने इस निर्माण को धार्मिक प्रतीकों का राजनीतिक लाभ के लिए प्रयोग बताया है। उनका कहना है कि अगर मंदिर निर्माण को तुरंत नहीं रोका गया या उसमें बदलाव नहीं किया गया तो वे कानूनी कार्रवाई करेंगे।
चारधाम तीर्थ पुरोहित महापंचायत के अध्यक्ष सुरेश सेमवाल ने कहा, “यह सिर्फ मंदिर नहीं, करोड़ों सनातन धर्म अनुयायियों की आस्था का केंद्र है। सैफई में केदारनाथ धाम की प्रतिकृति और गर्भगृह की नकल करना धार्मिक और भावनात्मक अपमान है। शिव मंदिर बनाने से किसी को आपत्ति नहीं, परंतु केदारनाथ जैसी आकृति और वास्तुकला अपनाना उस पवित्र स्थल की विशिष्टता को ठेस पहुंचाता है।”
महापंचायत के महासचिव बृजेश सती ने बताया कि तेलंगाना और दिल्ली में भी इसी प्रकार की नकल को भारी विरोध के बाद रोका गया था। उत्तराखंड सरकार ने 18 जुलाई 2024 को कैबिनेट प्रस्ताव पारित कर चारधाम मंदिरों के नाम और संरचना की अनधिकृत नकल पर रोक लगाई थी।
“केदारनाथ की नकल नहीं, प्रेरणा मात्र”: आर्किटेक्ट की सफाई
मंदिर के मुख्य वास्तुकार मोधू बोट्टा यादव ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि “यह प्रतिकृति नहीं है, केवल प्रेरणा है।” उन्होंने बताया कि इस मंदिर की बनावट में चार गोपुरम हैं, जो दक्षिण भारतीय शैली की पहचान है — जो केदारनाथ में नहीं है। मंदिर में 200 खंभों वाला गलियारा, जल कुंड और एक अनोखा नंदी की मूर्ति है जो गर्भगृह से विपरीत दिशा में है, जबकि केदारनाथ में नंदी भगवान शिव की ओर मुख किए होते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह डिज़ाइन कर्नाटक के चामुंडेश्वरी मंदिर से प्रेरित है।
हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि मंदिर का निर्माण अंतिम चरण में है और अब डिज़ाइन में कोई बड़ा बदलाव संभव नहीं है।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप शुरू
दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेता गोपाल यादव ने बीजेपी पर साजिश रचने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “यह विवाद बीजेपी द्वारा फैलाया गया है ताकि असली मुद्दों से जनता का ध्यान हटाया जा सके। यह मंदिर श्रद्धा का प्रतीक है, न कि किसी की नकल। हम भगवान शिव का सम्मान कर रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि यह विवाद राजनीतिक रूप से प्रेरित है और आगामी 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाने का प्रयास है।
आस्था, राजनीति और परंपरा के टकराव पर खड़ा हुआ मामला
अब जबकि मंदिर का उद्घाटन 15 फरवरी 2026 को महाशिवरात्रि पर निर्धारित है, और निर्माण लगभग पूर्ण हो चुका है, यह मामला अदालत और राजनीतिक मंच तक पहुंच सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि ‘केदरेश्वर धाम’ को आधुनिक श्रद्धा का प्रतीक माना जाएगा या परंपरा का उल्लंघन।



