
रविवार, 21 अप्रैल की सुबह जम्मू-कश्मीर के रामबन जिले में बादल फटने से भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं हुईं, जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक लोगों को रेस्क्यू कर सुरक्षित निकाला गया। इस हादसे ने इलाके में व्यापक तबाही मचा दी है — कई सड़कें बंद हो गई हैं और दर्जनों मकान क्षतिग्रस्त हो गए हैं। जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग मलबे से पूरी तरह बंद हो गया, जिससे सैकड़ों वाहन रास्ते में फंसे हुए हैं।
सबसे ज़्यादा प्रभावित क्षेत्र सीरी बगना गांव रहा, जहां तीन लोगों की जान गई। एक स्थानीय निवासी ने बताया, “मैं तेज़ आवाज़ से जाग गया था। ऐसा मौसम पहले कभी नहीं देखा।” धारमकुंड इलाके में लगभग 40 घर क्षतिग्रस्त हुए हैं, जिनमें से 10 पूरी तरह से ढह गए। पुलिस, राहत दल और स्थानीय स्वयंसेवकों ने लगातार बारिश के बीच 100 से अधिक लोगों को सुरक्षित बचा लिया है। राहत के लिए स्थानीय स्कूलों को आश्रय शिविर में बदला गया है, जहां प्रशासन द्वारा खाद्य सामग्री और आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।
सुरक्षा कारणों से कश्मीर में सभी शैक्षणिक संस्थानों को 21 अप्रैल को बंद करने के आदेश दिए गए हैं। राहत कार्यों की सराहना करते हुए केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह और उपमुख्यमंत्री सुरिंदर कुमार चौधरी ने मौके पर मौजूद टीमों का हौसला बढ़ाया। उपमुख्यमंत्री ने कहा, “घबराने की जरूरत नहीं है, सरकार इस दुख की घड़ी में पूरी तरह से आपके साथ है।”
प्रश्न यह है कि जलवायु परिवर्तन से प्रभावित ऐसे दूरस्थ गांवों को इस तरह की आपदाओं से कैसे बचाया जा सकता है?