
तेलंगाना सरकार को सुप्रीम कोर्ट में उस समय कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा जब हैदराबाद के कांचा गच्चीबौली इलाके में लगभग 100 एकड़ वन भूमि को तेजी से और बिना किसी मंजूरी के साफ किए जाने का मामला सामने आया। यह इलाका हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी कैंपस के पास स्थित है।
जस्टिस बी.आर. गवई और ए.जी. मसीह की पीठ ने इस बड़े पैमाने पर की गई जंगल की कटाई को लेकर सरकार पर सख्त टिप्पणियां कीं। न्यायमूर्ति गवई ने तीखे शब्दों में कहा, “हम केवल इस बात से चिंतित हैं कि वहां बुलडोजर चले और 100 एकड़ का जंगल साफ कर दिया गया। अगर आप कुछ बनाना चाहते थे… तो पहले जरूरी अनुमति लेनी चाहिए थी।”
कोर्ट ने वन्यजीवों पर पड़े प्रभाव को लेकर विशेष चिंता जताई। याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत किए गए वीडियो फुटेज का हवाला देते हुए पीठ ने बताया कि किस तरह से घास खाने वाले जानवर उस क्षेत्र से भागते हुए देखे गए और आवारा कुत्तों द्वारा उन पर हमला किया गया। न्यायाधीशों ने यह भी सवाल उठाया कि क्या सरकार ने कुछ जानवरों को “संरक्षित प्रजातियों” की सूची से स्वयं बाहर कर दिया।
कोर्ट ने राज्य के वाइल्डलाइफ वार्डन को निर्देश दिया कि विस्थापित जानवरों की सुरक्षा और आश्रय की व्यवस्था की जाए। साथ ही कोर्ट ने 3 अप्रैल को जारी अपने आदेश को दोहराया, जिसमें 100 एकड़ क्षेत्र में किसी भी प्रकार की गतिविधि पर रोक लगाई गई थी—सिवाय उन प्रयासों के जो शेष वृक्षों की रक्षा के लिए आवश्यक हों।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को चेतावनी दी कि अगर वह वन बहाली की ठोस योजना पेश नहीं करती है, तो मुख्य सचिव सहित शीर्ष अधिकारियों को जेल का सामना करना पड़ सकता है। जस्टिस गवई ने सख्त लहजे में कहा, “अगर आप अपने मुख्य सचिव को बचाना चाहते हैं… तो 100 एकड़ भूमि को बहाल करने की योजना लेकर आइए। वरना, हमें नहीं पता कि आपके कितने अधिकारी अस्थायी जेल में होंगे।” उन्होंने यह भी सवाल उठाया, “ऐसी क्या जल्दी थी कि ये सब सिर्फ तीन दिनों में, वो भी छुट्टियों में किया गया?”
यह विवाद उस योजना से जुड़ा है जिसमें राज्य सरकार हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पास करीब 400 एकड़ क्षेत्र को पुनर्विकसित करने की तैयारी में है। इस फैसले के खिलाफ छात्रों, कार्यकर्ताओं और वता फाउंडेशन जैसे एनजीओ ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह इलाका समृद्ध वनस्पति और जीव-जंतुओं का घर है और उन्होंने इस क्षेत्र को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम के तहत ‘राष्ट्रीय उद्यान’ घोषित करने की मांग की है।