
गृह मंत्रालय ने अवैध प्रवासियों की पहचान के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 30 दिन की मोहलत दी
केंद्र सरकार ने बांग्लादेश और म्यांमार से आए अवैध प्रवासियों की पहचान के लिए सख्त रुख अपनाते हुए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (UTs) को 30 दिनों के भीतर संदिग्ध व्यक्तियों के दस्तावेजों की जांच पूरी करने का निर्देश दिया है। यदि इस अवधि में उनकी नागरिकता या पहचान प्रमाणित नहीं होती है, तो उन्हें देश से बाहर निकाला (डिपोर्ट) किया जा सकता है।
गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा जारी इस आदेश में स्थानीय प्रशासन को कानूनी अधिकारों का उपयोग कर अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों की पहचान, निगरानी और निष्कासन की प्रक्रिया तेज करने के लिए कहा गया है। साथ ही जिला स्तर पर डिटेंशन सेंटर (हिरासत केंद्र) की उपलब्धता सुनिश्चित करने के निर्देश भी दिए गए हैं ताकि डिपोर्टेशन से पहले इन लोगों को रोका जा सके।
यह कदम सरकार की उस व्यापक रणनीति का हिस्सा है जिसका उद्देश्य बांग्लादेश और म्यांमार से आने वाले अवैध प्रवासियों की समस्या को सुलझाना है। यह एडवाइजरी बीएसएफ और असम राइफल्स के प्रमुखों को भी भेजी गई है, जो इन दोनों देशों से लगी भारत की सीमाओं की निगरानी करते हैं।
इससे पहले फरवरी में, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या प्रवासियों को भारत में प्रवेश दिलाने, फर्जी दस्तावेज उपलब्ध कराने और अवैध रूप से बसाने वाले नेटवर्क पर कड़ी कार्रवाई की बात कही थी। उन्होंने कहा था, “अवैध घुसपैठ एक राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है और इससे सख्ती से निपटना होगा। ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर किया जाना चाहिए।”
इसी मुद्दे से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक श्रीलंकाई नागरिक की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उसने जेल की सजा पूरी होने के बाद देश से डिपोर्ट न करने की मांग की थी।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा, “क्या भारत पूरी दुनिया के शरणार्थियों का आश्रय स्थल बन जाए? 140 करोड़ की आबादी वाले देश में हम हर किसी के लिए धर्मशाला नहीं बन सकते।”
याचिकाकर्ता, जो एक श्रीलंकाई तमिल है, ने अपने देश में जान को खतरा होने का हवाला दिया था, लेकिन अदालत ने उसे यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी, “किसी और देश चले जाइए।“